गुरुवार, 4 जून 2020

🙏🙏 *शनि का गोचर कर्क राशि व मकर राशि में* 🙏🙏
          भारत की सनातन संस्कृति में ज्योतिष का बहुत बड़ा स्थान है ।  भारत के लोग ज्योतिष को आदर की दृष्टि से देखते हैं ।  वैसे तो  शनि जब  बृहस्पति से  व  राहु से  मंगल से  युति संबंध या  दृष्टि संबंध आमने सामने करता है उस समय विश्व में  बड़ी बड़ी दुर्घटनाएं  होती हुई देखी गई है है  । हमने कई बार देखा कि शनि ग्रह जब जब मकर राशि या कर्क राशि में विराजमान रहते हैं तब तक भारत में या विश्व में कोई ना कोई बड़ी घटना अवश्य होती है । शनि जब-जब मकर  राशि में आता है या कर्क राशि में आता है तब तब विश्व में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाता है वर्तमान में शनि ग्रह मकर राशि में जनवरी 2020 से आए हैं आप देख रहे हैं कि शनि के मकर राशि में आने के पश्चात पूरे विश्व में कोरोना वायरस की महामारी बहुत विस्तृत रूप से फैली हुई है और लाखों की संख्या में पूरे विश्व में लोग इससे संक्रमित हो रहे हैं और हजारों आदमियों की जान चली गई है यह रिसर्च करने जैसा विषय है कि ऐसा क्यों होता है हर बार तो हमने ज्योतिष के कई सिद्धांतों को देखा और उनको अपनी कसौटी पर सत्य पाया कि जब जब शनि मकर राशि या कर्क राशि में आता है उस समय वह भारत में वह विश्व में कोई न कोई घटना अवश्य घटित करवाता है वर्तमान में शनि 2020 और 2021 2022 तक मकर राशि में विराजमान रहेंगे तो वर्तमान की परिस्थिति आप देख ही रहे हैं कि उसने आने के पश्चात कितनी तबाही मचा रखी है और ना जाने 2020 2021 मैं क्या करेगा वैसे मैं पुरानी घटनाओं के आधार पर कुछ उदाहरण दे रहा हूं जिस जिस समय शनि किन राशियों में आया था कौनसे-कौनसे साल में कौन सी कौन सी घटना हुई इसका पूरा विवरण मैं नीचे पूर्ण रूप से दे रहा हूं ।
(1) सन 2005 - 2006 की घटना
              शनि ग्रह कर्क राशि में था उस समय विश्व में सुनामी आई थी,  इराक युद्ध, पाकिस्तान में भूकंप आने से 75000 से ज्यादा मौत मौतें हुई थी वह इंडोनेशिया में भूकंप से करीबन 7000 आदमी मरे थे
(2) 1990- 1991 की प्रमुख घटना
       इस समय शनि मकर राशि में राहु के साथ है मई 1991 में राजीव गांधी की मौत व भारत में बहुत बड़ी आर्थिक मंदी आई थी व उस समय सोवियत संघ का विघटन हुआ था ,इसके साथ-साथ कश्मीर में 1990 के समय से लाखों कश्मीरी पंडितों को मारा गया था, इसके साथ-साथ अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन के तहत बाबरी मस्जिद को ढहा दिया गया था यह कार्य 1990- 91 में हुआ था ।
(3)  1975 - 1976 की महत्वपूर्ण घटना
           इस समय शनि कर्क राशि में उपस्थित थे और भारत में उस समय की महत्वपूर्ण घटना आपातकाल का लगा हुआ होना था सूरीनाम देश  होलेंड से स्वतंत्र हुआ था इटली फ्रांस जर्मनी ऑस्ट्रिया चेकोस्लोवाकिया युगो स्लोवाकिया में भूकंप आया था उस समय हजारों लोग मरे थे ।
(4) 1961- 1962 की महत्वपूर्ण घटना
         शनि ग्रह उस समय मकर राशि में गोचर कर रहा था।  उस समय भारत चीन का युद्ध हुआ था इसमें हजारों सैनिक मरे थे अक्टूबर 1962 में क्यूबा में रूस ने मिसाइल लगाई थी जिससे अमेरिका व पश्चिम के देशों में स्वीट युद्ध प्रारंभ हुआ था ।
(5) 1946- 1948 की महत्वपूर्ण घटना
           इस समय शनि कर्क राशि में विचरण कर रहा था 19 सौ 46 से 50 तक भारत की आजादी का बहुत बड़ा संघर्ष भारत का ब्रिटेन से स्वतंत्र होना व भारत के कई स्वतंत्रता सेनानियों की जान  इसमें गई थी थी व फ्रांस से सीरिया आजाद हुआ था वह फिलिस्तीन के मुख्यालय को उड़ा दिया गया था ।
(6) 1932- 1933 की महत्वपूर्ण घटना
           शनि इस समय मकर राशि में गोचर कर रहा था उस समय भारत के स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन में तारापुर गोली कांड हुआ था वह भारत में जगह-जगह तिरंगा फहराने का आंदोलन हुआ था उसमें हजारों स्वतंत्रता सेनानियों की मौत हुई थी ।
(7) 1917 - 1919 की महत्वपूर्ण घटना
            शनि इस समय कर्क राशि के गोचर में थे उस समय विश्व की सबसे बड़ी घटना रूस में जार निकोलस के खिलाफ एक बड़ी क्रांति जो उस समय की बहुत बड़ी घटना थी उस आंदोलन के समय लाखों रूसियों की जान गई थी इटली ने तुर्की के खिलाफ युद्ध किया था ।
     इस प्रकार पंडित जितेंद्र आचार्य यानि मैंने अपने द्वारा किए गए अनुसंधान में पाया कि विश्व में जितनी भी बड़ी घटनाएं हुई थी वह सभी की सभी शनि के मकर राशि व कर्क राशि में गोचर में विचरण करते समय हुई थी । कई बार आप देख सकते है कि शनि व गुरु , शनि व राहु , शनि व मंगल के आमने सामने की दृष्टि व युति संबंध का विश्व में बहुत बड़ा प्रभाव प्रत्यक्ष होते पाया है । पंडित जितेंद्र आचार्य  ज्योतिषाचार्य एवं पंचांगकर्त्ता । बीकानेर, कोलकाता व दिल्ली । 9831116226

मंगलवार, 21 जून 2011

ऐसा प्रायः देखा गया है कि इंग्लिश मीडियम में पढने वाला व्यक्ति कई बार ज्ञान और शिक्षा कि बातें करता है और लोगो को शिक्षाप्रद बातों के ज्ञान के बारे में बताता है तो उसकी यह गलत सोच होती है कि भारतीय संस्कृति के जितने विद्वान् हुए थे उनकी शिक्षा प्रद बाते अंग्रेजी विद्वानों से ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं होती है | मै यह नहीं कहता ही अंग्रजी विद्वान् कि शिक्षाप्रद बाते गलत होती है पर वे बातें भारतीय संस्कृति के परिवेश में कई बार लागु होगी यह जरुरी नहीं है क्योकि भारतीय ऋषियों और मुनियों ने जो ज्ञानप्रद बातें और शिक्षा प्रद और नीतिगत बातें लिखी है वे भारतीय परिवेश और भारतीय संस्कृति के देश काल के अनुसार लिखी है और उन बातों में आज भी उतनी ही गंभीरता और मर्म छुपा होता है जो आज कि देश काल परिस्तिथि के अनुकूल होती है | अगर उन बातों को प्रबंधन के नजरिये से देखा जाये तो आज के ज़माने मै वे शिक्षा प्रद बातें सटीक बैठती है ! हमारी संस्कृति के विद्वान् याग्वल्क्य , विदुर , चाणक्य , शुक्र , मनु , पराशर , नारद , वृहस्पति , कात्यायन , दक्ष , हारित, न जाने ऐसे ऐसे विद्वान् जिनकी सूचि प्रकाशित कि जाये तो विद्वानों के नाम कि खली किताब लिख दि जाएगी | जिनकी शिक्षाप्रद बातें बहुत ही महतवपूर्ण है | हमारी शिक्षा नीति कि भी यही कमी है कि हमारे धर्म निर्पेकेक्ष्ता कि बाते करने वाली सरकार भी उन्ही विदेशी विद्वानों कि लिखी बाते हमारे नए युग कि पीढ़ी को पढ़ाने कि कोशिश करके अपना धर्मनिरपेक्ष चेहरा सबके सामने रख रही है | इस विषय पर मेरे कई प्रश्न सरकार के उन विद्वानों से है जिनके द्वारा हमारी शिक्षा नीति बनायीं जा रही है
१ - क्या हम अपने बच्चो को जिनको अंग्रेजी माध्यम से पढने वाले लडको को भारतीय इतिहास कि जानकारी में भारतीय संस्कृति से सम्बंधित इतिहास क्या इंग्लिश माध्यम से नहीं लिखा जा सकता है ?
२ - क्या भारतीय लोग वैदिक ज़माने कि परंपरा में डॉक्टर नहीं होते थे क्या और क्या वे सभी इंग्लिश माध्यम से पढ़ते थे ?
३ - क्या भारतीय लोगों ने वकालत कि पढाई इंग्लिश माध्यम से करते थे और क्या वे सभी न्यायप्रिय नहीं थे ?
४ - क्या भारतीय संस्कृति को पढने के लिए विदेशो से विद्यार्थी नहीं आते थे ?
५- क्या भारत कि तक्षशिला विश्वविद्यालय / नालंदा विश्वविद्यालय और न जाने कितनी विश्वविद्यालय जो विश्व कि सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय नहीं थी ?
६ - भारत के आध्यात्म लोगो के सम्पर्क में विदेशी लोग जो भारत के आध्यात्म कि जानकारी लेने के लिए नहीं आते है क्या ? और आते है तो उसके पीछे क्या कारण हो सकते है ?
७ - भारत के या अन्य देशो के लोगो को जितनी सुविधा और रिसर्च करने पर सरकारे जो लाखो रूपये खर्च करती है क्या भारत कि किसी भी सरकार ने कभी भारत के आयुर्वेद / ज्योतिष / पुराणो और वेदों पर रिसर्ष करने पर सरकार करती है क्या ? और भी कई विषय है उन पर आगे फिर लिखा जायेगा
पण्डित जितेंदर आचार्य "ज्योतिषाचार्य"
ऐसा प्रायः देखा गया है कि इंग्लिश मीडियम में पढने वाला व्यक्ति कई बार ज्ञान और शिक्षा कि बातें करता है और लोगो को शिक्षाप्रद बातों के ज्ञान के बारे में बताता है तो उसकी यह गलत सोच होती है कि भारतीय संस्कृति के जितने विद्वान् हुए थे उनकी शिक्षा प्रद बाते अंग्रेजी विद्वानों से ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं होती है | मै यह नहीं कहता ही अंग्रजी विद्वान् कि शिक्षाप्रद बाते गलत होती है पर वे बातें भारतीय संस्कृति के परिवेश में कई बार लागु होगी यह जरुरी नहीं है क्योकि भारतीय ऋषियों और मुनियों ने जो ज्ञानप्रद बातें और शिक्षा प्रद और नीतिगत बातें लिखी है वे भारतीय परिवेश और भारतीय संस्कृति के देश काल के अनुसार लिखी है और उन बातों में आज भी उतनी ही गंभीरता और मर्म छुपा होता है जो आज कि देश काल परिस्तिथि के अनुकूल होती है | अगर उन बातों को प्रबंधन के नजरिये से देखा जाये तो आज के ज़माने मै वे शिक्षा प्रद बातें सटीक बैठती है ! हमारी संस्कृति के विद्वान् याग्वल्क्य , विदुर , चाणक्य , शुक्र , मनु , पराशर , नारद , वृहस्पति , कात्यायन , दक्ष , हारित, न जाने ऐसे ऐसे विद्वान् जिनकी सूचि प्रकाशित कि जाये तो विद्वानों के नाम कि खली किताब लिख दि जाएगी | जिनकी शिक्षाप्रद बातें बहुत ही महतवपूर्ण है | हमारी शिक्षा नीति कि भी यही कमी है कि हमारे धर्म निर्पेकेक्ष्ता कि बाते करने वाली सरकार भी उन्ही विदेशी विद्वानों कि लिखी बाते हमारे नए युग कि पीढ़ी को पढ़ाने कि कोशिश करके अपना धर्मनिरपेक्ष चेहरा सबके सामने रख रही है | इस विषय पर मेरे कई प्रश्न सरकार के उन विद्वानों से है जिनके द्वारा हमारी शिक्षा नीति बनायीं जा रही है
१ - क्या हम अपने बच्चो को जिनको अंग्रेजी माध्यम से पढने वाले लडको को भारतीय इतिहास कि जानकारी में भारतीय संस्कृति से सम्बंधित इतिहास क्या इंग्लिश माध्यम से नहीं लिखा जा सकता है ?
२ - क्या भारतीय लोग वैदिक ज़माने कि परंपरा में डॉक्टर नहीं होते थे क्या और क्या वे सभी इंग्लिश माध्यम से पढ़ते थे ?
३ - क्या भारतीय लोगों ने वकालत कि पढाई इंग्लिश माध्यम से करते थे और क्या वे सभी न्यायप्रिय नहीं थे ?
४ - क्या भारतीय संस्कृति को पढने के लिए विदेशो से विद्यार्थी नहीं आते थे ?
५- क्या भारत कि तक्षशिला विश्वविद्यालय / नालंदा विश्वविद्यालय और न जाने कितनी विश्वविद्यालय जो विश्व कि सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय नहीं थी ?
६ - भारत के आध्यात्म लोगो के सम्पर्क में विदेशी लोग जो भारत के आध्यात्म कि जानकारी लेने के लिए नहीं आते है क्या ? और आते है तो उसके पीछे क्या कारण हो सकते है ?
७ - भारत के या अन्य देशो के लोगो को जितनी सुविधा और रिसर्च करने पर सरकारे जो लाखो रूपये खर्च करती है क्या भारत कि किसी भी सरकार ने कभी भारत के आयुर्वेद / ज्योतिष / पुराणो और वेदों पर रिसर्ष करने पर सरकार करती है क्या ? और भी कई विषय है उन पर आगे फिर लिखा जायेगा
पण्डित जितेंदर आचार्य "ज्योतिषाचार्य"

गुरुवार, 4 नवंबर 2010

जिस प्रकार खीरे के मुख को काट कर उसकी कड़वाहट दूर करने के लिए नमक लगाकर मल्ला जाता है ! कडवा और कटु बोलने वालो को भी इसी प्रकार की सजा देना चाहिए ! ( रहीम )
मनुष्य को चाहिए की वह दुसरो को अपमानित करने की प्रवृति , मित्र के प्रति धोखाधड़ी करने के विचार, दुष्ट एवं नीच व्यक्ति की सेवा या संगति, अभिमान एवं दुसरो के मर्म पर चोट पहुचानेवाली कटु वाणी का हमेशा त्याग कर देवें ! ( विदुर नीति
किसी भी समझदार व्यक्ति को किसी दुसरे आदमी को कार्य करते देख और उसमे सफलता प्राप्त करते हुए देखकर अचानक ही उस कार्य की कभी भी नक़ल नहीं करना चाहिए ! किसी कार्य की सम्पूर्ण प्रक्रति को समझे बिना उस कार्य की नक़ल करने पर उसको पश्चाताप करना पड़ता है १ ( श्री मद भगवत महा पुराण
वाणी की मधुरता का कोई अर्थ नहीं है , यदि हृदय में मधुरता और प्रेम न हो ! ह्रदय में कटुता और अहंकार हो तो मधुर वाणी भी विष बुझे तीर जैसी हो जाती है !