गुरुवार, 4 नवंबर 2010

वाणी की मधुरता का कोई अर्थ नहीं है , यदि हृदय में मधुरता और प्रेम न हो ! ह्रदय में कटुता और अहंकार हो तो मधुर वाणी भी विष बुझे तीर जैसी हो जाती है !

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