गुरुवार, 4 नवंबर 2010

जिस प्रकार खीरे के मुख को काट कर उसकी कड़वाहट दूर करने के लिए नमक लगाकर मल्ला जाता है ! कडवा और कटु बोलने वालो को भी इसी प्रकार की सजा देना चाहिए ! ( रहीम )
मनुष्य को चाहिए की वह दुसरो को अपमानित करने की प्रवृति , मित्र के प्रति धोखाधड़ी करने के विचार, दुष्ट एवं नीच व्यक्ति की सेवा या संगति, अभिमान एवं दुसरो के मर्म पर चोट पहुचानेवाली कटु वाणी का हमेशा त्याग कर देवें ! ( विदुर नीति
किसी भी समझदार व्यक्ति को किसी दुसरे आदमी को कार्य करते देख और उसमे सफलता प्राप्त करते हुए देखकर अचानक ही उस कार्य की कभी भी नक़ल नहीं करना चाहिए ! किसी कार्य की सम्पूर्ण प्रक्रति को समझे बिना उस कार्य की नक़ल करने पर उसको पश्चाताप करना पड़ता है १ ( श्री मद भगवत महा पुराण
वाणी की मधुरता का कोई अर्थ नहीं है , यदि हृदय में मधुरता और प्रेम न हो ! ह्रदय में कटुता और अहंकार हो तो मधुर वाणी भी विष बुझे तीर जैसी हो जाती है !
जीवन में अगर कोई भी परिस्थिति में अपनी पहचान छुपाकर कोई और चित्र से अपनी पहचान बनाना चाहता हे तो मेनेजमेंट गुरु चाणक्य यही बात कहते हे की उनकी विस्वसनीयता पर संदेह रखना चाहिए वो लग कभी भी धोका देने की कोसिस कर सकते है